समझदार मैं

अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं।
बड़े-बड़े सपने अब रातों की नींद नहीं छिनते,
छोटे-छोटे ख्बाव सिरहाने रख सो लेती हूं
अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं ।
कभी किसी पुरानी डायरी के पन्नो में,
कभी अदरक वाली चाय की खुशबू में,

तो कभी वशीर बद्र की ग़ज़लों में सुकून ढूँढ ही लेती हूं

अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं।
कभी बारिश से सूखे कपड़े बचाने के बहाने भीगती,

कभी सर्द रातों में भी तारों की नुमाइश देखती हूं

अजनबियों के लिए भी मुस्कुराती,
और बच्चों के साथ बच्ची बन जाती हूं।
अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं ।
कभी पुराने दोस्तों के साथ घंटों गप्पे लड़ा के,
तो कभी अकेले में गुनगुना के शामें बिताती हूं।

हर भूल पे समझाती और जीत पे अपना पीठ खुद थपथपाती हूं।

अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं।
इंसानों का डर निकाल दिया है दिल से, अब फिर बस भूतों से डरती हूं

जहां कभी बस खामियां थी, अब वही आईना देख खुद पे इतराती हूं

अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं।
जो ना मिला उसका अफ़सोस छोड़ जो पास है उसकी कद्र करती हूं
कल की कोई फ़िक्र नहीं रही मुझमें, आज इस पल अल्हड़ सी फिरती हूं
अब मैं जिंदगी की बेहतर समझ रखती हूं

🌷💕

32 thoughts on “समझदार मैं

  1. अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें
    हो गया है ज़िंदगी का तजरबा थोड़ा बहुत..

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      1. ye toh aapka badapan hai ki hume itna man de rhe hain..
        Avm yhi pechan hoti hai sunder vicharo ki ki khid ko man na dekr samne wale ki tarif ki jaye..

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